गाजियाबाद।
गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट में अपराध विवेचनाओं में पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए अहम कदम उठाए गए हैं। पुलिस आयुक्त के निर्देश पर थानों में पंजीकृत अभियोगों में अभियुक्तों की नामजदगी बढ़ाने या हटाने और धाराओं में परिवर्तन के लिए अब उच्चाधिकारियों की अनुमति अनिवार्य कर दी गई है। यह व्यवस्था 20 अप्रैल 2025 से प्रभावी है।
इस पहल का मुख्य उद्देश्य विवेचकों की मनमानी पर अंकुश लगाना और पीड़ितों को निष्पक्ष जांच का भरोसा देना है। पहले शिकायतकर्ताओं द्वारा अक्सर विवेचकों पर नामजदगी या धाराएं बदलने में पक्षपात के आरोप लगाए जाते थे। नई व्यवस्था से यह स्थिति काफी हद तक सुधरी है।
31 मई 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, पुलिस उपायुक्त स्तर से अनुमोदित विवेचनाओं की संख्या 11 है, जिनमें 20 अभियुक्तों को गलत नामजद पाया गया, जबकि 5 अभियुक्तों को नए सिरे से चिन्हित किया गया। इसके अलावा 19 मामलों में धाराओं में वृद्धि या लोप किया गया। वहीं सहायक पुलिस आयुक्त स्तर पर 36 मामलों में अनुमोदन दिया गया, जिनमें 37 अभियुक्तों की नामजदगी गलत पाई गई और 36 नए अभियुक्तों को प्रकाश में लाया गया। कुल मिलाकर 58 मामलों में धाराएं बढ़ाई या हटाई गईं।
इन बदलावों के चलते अब गाजियाबाद के सभी थानों में विवेचना प्रक्रिया पहले की तुलना में अधिक स्पष्ट और नियंत्रित हो गई है। हालांकि यह सवाल अभी बना हुआ है कि क्या यह कार्रवाई केवल कागज़ी है या ज़मीनी स्तर पर भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। लेकिन इतना ज़रूर है कि नए पुलिस कमिश्नरेट के आने के बाद कार्यप्रणाली में नई तकनीकें, नये प्रयोग और प्रणालीगत सुधार जरूर देखने को मिल रहे हैं।
पुलिस का दावा है कि इससे पीड़ितों का भरोसा बढ़ा है और विवेचकों की जवाबदेही भी तय हो रही है। आगे देखना यह होगा कि क्या यह पहल लंबे समय तक लागू रहकर अपराध नियंत्रण और न्याय में मददगार साबित हो पाएगी या नहीं।